अजय यादव

काव्य या यूँ कहें कि साहित्य से इनका लगाव बचपन से ही रहा। इनके पिता जी को हिन्दी काव्य में गहरी रूचि थी। अकसर उनसे कविताएँ सुनते-सुनते कब खुद भी साहित्य-प्रेमी बन गये, पता ही नहीं चला। घर में महाभारत, गीता आदि कुछ धार्मिक किताबें थीं, उनसे स्वाध्याय की जो शुरूआत हुई, वह वक़्त गुजरने के साथ-साथ शौक से ज़रूरत बन गयी। परन्तु अब तक पढ़ने का ये शौक सिर्फ पढ़ने तक ही सीमित रहा था, कभी स्वयं कुछ लिखने का प्रयास नहीं किये। कुछ समय पूर्व बज़रिये अंतरजाल शैलेश भारतवासी के संपर्क में आए तो पढ़ने के इस सिलसिले को एक नयी दिशा मिली। जिनके कहने पर पहली बार कुछ लिखने का प्रयास किये। हालाँकि अजय यादव के विचार में काव्य में कुछ कहने से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, पाठक को स्वयं किसी विषय पर विचार करने के लिये प्रेरित करना और इस लिहाज से अभी ये खुद को कवि नहीं कह सकते। पर फ़िर भी मन में उठने वाले विचारों को काग़ज़ पर उतार देने का प्रयास करते हैं। यदि इनके इस प्रयास से किसी को एक पल की खुशी मिल सके, किसी को अपने दुख में सांत्वना मिल सके या किसी विषय विशेष की तरफ पल भर को ही सही पाठक का ध्यान आकर्षित हो सके तो ये अपने प्रयास को सार्थक समझेंगे।


इनका वार- शुक्रवार




संपर्क-

मकान न॰- ११६१

गली न॰- ५४

संजय कॉलोनी

एन॰आई॰टी॰ फरीदाबाद

हरियाणा (१२१००५)

ई-मेल- ajayyadavace@gmail.com




योगदानः-

बादल का घिरना देखा था

तीन चार रोज़ हुए

अब हमसे और अपने दिल को समझाया नहीं जाता

इंगितों के अर्थ

एक और कर्मवीर

मायूस हो गये

इन्सान ही बदल गया है

प्रेयसि वर्षा की ऋतु आयी

निकला नभ में, भोर का तारा

आये बिना बहार की, रवानी चली गयी

मेरे शहर में बारिश

जग समझा वर्षा ऋतु आयी

कहाँ गये पक्षी

तेरे हुस्न के सदके में

आँखें तब आँसू भर लाती थीं

आदमी तो मिला नहीं

शाह बन नकल गया

गलत वो हो नहीं सकता

न खुदा को भी जिंस-ए-गिराँ कीजिए

तहज़ीब और इंसानियत जो बेच खाते हैं

प्यार की पहली किरन

हिंदी को अपनाइए (दो कुंडलियाँ)

मुसाफ़िर सा जीवन

पत्थरों के शहर में एक घर बनाकर देखिए

शब्द मेरे, बोल कह दूँ

डूबते सूरज को अक्सर बड़ी देर तक तकता है वो

सड़कें; सर्द रात में

बेनकाब होके जो घर से मैं बाहर निकला

दीपक मगर जलता रहा

रात भर जागती आँखों से सना था हमने

दर्द के घर में किया फिर से बसेरा हमने

फिर रात हुई

तो हर दिन यारों होली है

रजनी सखी मुस्कराने लगी